देश के कई हिस्सों में प्याज की कीमतें 100 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई हैं। विपक्ष लगातार सरकार पर सवाल उठा रहा है। ऐसा पहली बार नहीं है, जब प्याज के दाम केंद्र या किसी राज्य की सरकार के लिए चुनौती बन गए हों। पहली बार 1980 में प्याज की कीमतें चुनावी मुद्दा बनीं। तब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार थी और कांग्रेस विपक्ष में थी। इंदिरा गांधी चुनाव प्रचार के दौरान प्याज की माला पहनकर घूमीं। आम चुनावों में जनता पार्टी की हार हुई थी। एक और उदाहरण दिल्ली का है, जहां 1998 में प्याज की कीमतों के चलते ही भाजपा ने 3 मुख्यमंत्री बदले, लेकिन यह ऐसा चुनावी मुद्दा बना कि पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।
1980: चुनावी नारा बना- जिस सरकार का कीमत पर जोर नहीं, उसे देश चलाने का आधिकार नहीं
जनता पार्टी केंद्र में थी। प्याज की कीमतें बढ़ गईं। 1980 के आम चुनाव में विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और इंदिरा गांधी प्याज की माला पहनकर प्रचार करने गईं। चुनावी नारा भी बना कि जिस सरकार का कीमत पर जोर नहीं, उसे देश चलाने का अधिकार नहीं। चुनावी नतीजे आए तो जनता पार्टी की हार हुई और कांग्रेस ने सरकार बनाई। नतीजों के बाद यही कहा गया कि जनता पार्टी प्याज की कीमतों के चलते चुनाव हारी।